प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) को लेकर बनाए गए एक आपत्तिजनक कार्टून के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कार्टूनिस्ट हेमंत मालवीय को किसी भी तरह की अंतरिम राहत देने से साफ इनकार कर दिया है। कोर्ट ने सख्त रुख अपनाते हुए कहा कि कुछ कलाकार, कार्टूनिस्ट और स्टैंड-अप कॉमेडियन “अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता” (Freedom of Expression) का गलत इस्तेमाल कर रहे हैं।
कोर्ट की कड़ी टिप्पणी
जस्टिस धूलिया की अध्यक्षता वाली बेंच ने सुनवाई के दौरान तीखा सवाल पूछा – “आप ये सब क्यों करते हैं?” अदालत ने कहा कि ऐसे बयानों और पोस्ट से देश का सामाजिक सौहार्द (Social Harmony) बिगड़ सकता है, और फिर लोग माफ़ी मांग कर केस खत्म करने की कोशिश करते हैं। कोर्ट ने यह भी साफ किया कि वह इस समय हेमंत मालवीय को गिरफ्तारी से अंतरिम राहत (Interim Protection from Arrest) नहीं देगी।
क्या है पूरा मामला?
इंदौर के रहने वाले कार्टूनिस्ट हेमंत मालवीय पर आरोप है कि उन्होंने फेसबुक पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, आरएसएस और भगवान शिव से जुड़ी आपत्तिजनक सामग्री पोस्ट की थी। इसमें कार्टून, कमेंट और वीडियो शामिल थे। इसको लेकर RSS कार्यकर्ता विनय जोशी ने इंदौर के लसूड़िया थाने में शिकायत दर्ज कराई थी।
शिकायत के अनुसार, मालवीय की पोस्ट न सिर्फ प्रधानमंत्री और संघ के खिलाफ अपमानजनक थीं, बल्कि उनका उद्देश्य हिंदू धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाना भी था।
हाईकोर्ट ने पहले ही खारिज की थी ज़मानत याचिका
इससे पहले मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने भी मालवीय की अग्रिम ज़मानत याचिका खारिज कर दी थी। कोर्ट ने कहा था कि उन्होंने “अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता” का अनुचित इस्तेमाल किया है और उन्हें ऐसे संवेदनशील विषयों पर सोच–समझकर कार्टून बनाना चाहिए।
अब क्या होगा आगे?
अब यह मामला 15 जुलाई को फिर से सुप्रीम कोर्ट में सुना जाएगा, जहां यह तय किया जाएगा कि हेमंत मालवीय को अग्रिम ज़मानत (Anticipatory Bail) दी जा सकती है या नहीं। तब तक के लिए उन्हें किसी भी तरह की राहत नहीं दी गई है।
अभिव्यक्ति की आज़ादी बनाम सामाजिक ज़िम्मेदारी
यह मामला अब एक बड़ी बहस का कारण बन गया है – कि क्या कोई कलाकार या कॉमेडियन अभिव्यक्ति की आज़ादी के नाम पर कुछ भी कह या दिखा सकता है? क्या सोशल मीडिया पर धार्मिक या राजनीतिक मुद्दों पर बनाए गए मज़ाक को स्वतंत्रता माना जाए या ज़िम्मेदारी से जुड़ा मामला?
इस केस के ज़रिए एक बार फिर से ये सवाल उठ खड़ा हुआ है कि “स्वतंत्रता की सीमा कहां तक होनी चाहिए?”